किसी नल के नीचे बाल्टी रखना, खाली बाल्टी, नल को बंद करके थोड़ा सा खोल देना, एकदम थोड़ा सा,
एक एक बून्द गिरे बाल्टी में इतना सा ही खोलना, एक एक बून्द जल्दी जल्दी बाल्टी में गिरने लगेगी,
कुछ समय के बाद बाल्टी भर जाएगी, अब थोड़ा सा ध्यान दीजिये,
बाल्टी मौत है, नल ईश्वर है , हमारा एक जन्म नल से बाल्टी तक का सफर है, हवा रस्ते की संसार है,
जितना पानी भरता जा रहा हमारे संचित कर्म है, और हम बून्द है,
समय की रफ़्तार इतनी तेज़ है की पता नहीं चलता कब नल से छूटे और कब बाल्टी में समां गए,
बस इतना देखना है की क्या बून्द बाल्टी तक पहुंचने में ये जान पायेगी की वो बून्द नहीं बल्कि ईश्वर का अंग है,
जो ईश्वर में से निकल के ईश्वर में ही विलीन होने जा रहा है, अगर बून्द ने ये जान लिया तो फिर,
ना बाल्टी है, ना हवा है, ना सफर है, ना नल है , बस बून्द ही है ,
और अगर नहीं जान पायी, तो काल कालांतर तक ये ही चलता रहेगा |
No comments:
Post a Comment